Monday, August 3, 2009

बेबस जान...

बारिश की बूंदों मैं छुपी
कुछ आंसुओं की दास्ताँ है
दुखों की तपिश मैं जल कर
मर चुकी हर भावना है

एक आस के सहारे जो
टकटकी बांधे खड़ा था
अब भयंकर काल का
कर रहा वो सामना है

थक चुके हैं पाँव उसके
आत्मा भी षीड़ है
झुक चुके है काँधे उसके
ह्रदय मैं धधकता पीड़ है

हाथ जोड़े, भीक मांगे
किस तरह वो प्राण त्यागे
काल कैसा दुष्ट देखो
वेदना पर हँस रहा है

हर श्वास बोझिल हो चली
हर क्षण प्रतिशोध की ज्वाला जली
चीत्कार बंद कर
अब खड़ा वो मूक है
वक्त की अग्नि मैं देखो
सुलगता उसका शोक है

No comments:

Post a Comment