Friday, August 19, 2011

तनहा रात में

इस तनहा रात में, एक तेरी याद में,
मैं यूँ ही मायूस जागता हूँ
कैसे समझाउं उन्हें के तेरा हर दर्द मेरा है
कैसे बतलाऊं उन्हें के तेरा साथ मेरा सवेरा है
कैसे कह दूं के तेरी हसी में मेरी ख़ुशी है
के बस तेरी निगाह में मेरी जन्नत बसी है

इस तनहा रात में, एक तेरी याद में,
मैं ना जाने क्यूँ सिसकता हूँ,
तुझे खो ना दूं कहीं मैं,
डरता हूँ बिलकता हूँ,

कैसे समझाउं उन्हें के तू ही मेरा घर मेरी मंज़िल है
कैसे बतलाऊं उन्हें के तेरा साया मेरा समंदर मेरा साहिल है
कैसे कह दूं के तेरी हर ख्वाहिश मेरा जुनूं है
के बस तेरे सहारे मुझे मिलता सुकूं है

इस तनहा रात में, एक तेरी याद में,
मैं ना जाने क्यूँ कुछ खो सा जाता हूँ,
किस्से करूँ अपना दर्द ये बयाँ,
जो कर सके यकीं हो ना शक़ दरमियाँ,
कैसे समझाउं उन्हें...

मैं... बस यूँ ही मायूस जागता हूँ,
इस तनहा रात में, एक तेरी याद में...

Thursday, June 3, 2010

For my love...that would always be...

Someday I know, you would see,
Breathing then though I might not be,
This very thought would make you weep,
Why were we such a creep?
Could it get all right, oh yes,
'Why did I stop', to you it may seem,
but I would be gone, no tears, no yells, no scream
If only you could hold my hands,
Happiness could galore under the magical wands
So much to say, but forced to be dumb
Emotions under wraps, acting numb
Being apart you would dislike
This is a state, even love frights
They say there's no wrong time
to do the right thing, but If Only...

Wednesday, June 2, 2010

Bleeding Heart

Simply devastated I may say it feels,
short of hope, hapless, and numb
The parcels of the past
have tattered every quantum of happiness

All efforts seem to drain
all words said are in vain
No matter how much I scream
the sounds get lost in this vacuum

The sense of insenstivity is all around
and within the confines of pain 'm bound

Swollen eyes yell at them
trying to say it all
But pain seemingly has taken
a form of numbness
Numbness that seems thralled


Sitting by the sea that today was calm,
The Tempest had caused a heart a lot of harm.
Salt was the closest thing to him like the air to a bubble,
as another pinch of it with water trickled down his cheeks and got lost in his stubble.
The vicious waters looked at him, 'you are crazy' they conveyed,
Red eyes looked up, 'Yes, but...' is all they said।

He awaits so desperately,
for his last breath...
All his ears want to hear,
is the sound of his death...
The bleeding heart has lost its Rainbow...

Sunday, October 11, 2009

अब के वो पूछे तो कह देना

अब के वो पूछे तो कह देना
मेरी यादों में भटकने वाले
मेरी उम्मीदों में खटकने वाले
मेरी आंखों को देख

मेरी आंखों में बिखरने वाले
मेरी साँसों में निख़रने वाले
मेरी रातों को देख

मेरी रातों में चमकने वाले
मेरे हाथों में दमकने वाले
मेरे अल्फाज़ को देख

मेरे अल्फ़ाज़ों में झलकने वाले
मेरे अंदाज़ में खनकने वाले
मेरे जाम को देख

मेरे जाम में छलकने वाले
मेरे सीने में सुलगने वाले

की वो मेरे ग़म से अनजान है
और मेरे हर दर्द से बेदख़ल

Monday, August 3, 2009

बेबस जान...

बारिश की बूंदों मैं छुपी
कुछ आंसुओं की दास्ताँ है
दुखों की तपिश मैं जल कर
मर चुकी हर भावना है

एक आस के सहारे जो
टकटकी बांधे खड़ा था
अब भयंकर काल का
कर रहा वो सामना है

थक चुके हैं पाँव उसके
आत्मा भी षीड़ है
झुक चुके है काँधे उसके
ह्रदय मैं धधकता पीड़ है

हाथ जोड़े, भीक मांगे
किस तरह वो प्राण त्यागे
काल कैसा दुष्ट देखो
वेदना पर हँस रहा है

हर श्वास बोझिल हो चली
हर क्षण प्रतिशोध की ज्वाला जली
चीत्कार बंद कर
अब खड़ा वो मूक है
वक्त की अग्नि मैं देखो
सुलगता उसका शोक है

Tuesday, July 14, 2009

एक चोट

भीगी सी पलकें मीचती...
रोंधि सी आवाज़ है चीखती...
स्वप्न द्वार पर शून्य है...
हृदय घात् पर शुब्ध है...

कोई मुझे अब आस देदो...
मैं जी सकूँ एक श्वास देदो...
मैं आघात से अनजान था...
और अब चोट से बेजान हूँ...

अपमान का जो बीज है...
हर भावना को खा चुका...
यह दर्द कैसा है मिला...
जो हर ख्वाब को मिटा चुका...

अब प्रयास हिसाब है माँगते...
किंतु प्रेम अभी भी मूक है...
जहाँ हसी थी खिल रही...
वहीँ अब सिसकता शोक है...

क्यूँ प्रतिशोध ह्यदय मैं जल रहा...
क्यूँ क्रोध तांडव कर रहा...
क्यूँ सहनशीलता मर चुकी...
क्यूँ द्वेष है इठला रहा...

चोट का गहरा घाव है...
और बस घाव ही मुझे दिख रहा...
घाव की दवा भी एक चोट है...
जिसकी खोज में मैं जल रहा...



Friday, February 13, 2009

मौन

चारों तरफ़ है चेतना,
भीतर सुलगती वेदना,
वो मौन है !
आचरण विनम्र किंतु,
मिल रही अव्हेलना,
वो मौन है !

आसमान भी चुप्पी है साधे,
सारी दिशायें मूक हैं,
वो मौन है !
व्यथाओं से पनपता,
दर्द भी अचूक है,
वो मौन है !

रोया नही गया नही,
अश्रु बाहर लाया नही,
वो मौन है !
विष सी पीड़ा सह के भी,
चीखा नही जताया नही,
वो मौन है !

सब शून्य है, निःशब्द है,
न आस है, न प्रयास है,
कर्म-वचन हैं खोखले,
मन हीरा कुंठित सा है,
स्वप्न होलिका है जल चुकी,
चिता स्वयं भी स्तब्ध है,
मिट चुके हैं गीत सारे,
न कोई आवाज़ है न पुकार है,
वो मौन है !

चारों तरफ़ है चेतना,
भीतर सुलगती वेदना,
और वो, बस मौन है !